IGBT Kya Hai IGBT क्या है? इंसुलेटेड गेट बाईपोलर ट्रांजिस्टर

IGBT Kya Hai IGBT क्या है? इंसुलेटेड गेट बाईपोलर ट्रांजिस्टर

आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताने जा रहे है की IGBT Kya Hai IGBT क्या है? इंसुलेटेड गेट बाईपोलर ट्रांजिस्टर, और यह कहा काम अत है | तो चलिए इस आर्टिकल में जानते है आईजीबीटी के बारे में विस्तार से |

आईजीबीटी कंट्रोल का मतलब क्या है ?

यहां पर आईजीबीटी कंट्रोल का मतलब है आईजीबीटी एक ट्रांजिस्टर है जिसका यूज इनवर्टर में किया जाता है जो डीसी को एसी में बदलता है और असल में यह थ्री फेज इंडक्शन मोटर को कंट्रोल इनवर्टर के थ्रू ही किया जाता है |

मोटर को कंट्रोल कौन करता है?

इनवर्टर में यह आईजीबीटी ही होता है जो इस मोटर को कंट्रोल करता है | आईजीबीटी हमारे जो फैन का रेगुलेटर होता है जो उसकी स्पीड को कम ज्यादा करता है उसी का एडवांस वर्जन है फैन के रेगुलेटर में एससीआर लगा रहता है तो पहले के टाइम में ऐसे मोटर को कंट्रोल करना थोड़ा मुश्किल था लेकिन आज के टाइम है हमारे पास में एडवांस टेक्नोलॉजी के स्विच है जो मोटर की स्पीड और कौर को आसानी से कंट्रोल कर लेते हैं वोल्ट डीसी मोटर को आज भी कंट्रोल करना आसान है और पहले भी कंट्रोल करना आसान था क्योंकि इसमें ज्यादा कोई कॉन्प्लेक्स सिस्टम होता नहीं है लेकिन इसकी बार-बार मेंटेनेंस की वजह से अब इसको कम यूज में किया जा रहा है जबकि पावरफुल डीसी मोटर ज्यादा होती है |

इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव में जो ट्रेक्शन मोटर यूज होती है उसकी सबसे अच्छी बात यह है कि यदि इस मोटर को रिवर्स डायरेक्शन में चलाना है तो ज्यादा कोई कॉन्प्लेक्स प्रोसेस नहीं है और यह रिवर्स डायरेक्शन में भी उतनी ही स्पीड में चलती है जितनी फॉरवर्ड डायरेक्शन में चलती है

जैसा की आप जानते है की ट्रेन का इंजन दोनों साइड में फुल स्पीड पर चल सकता है क्योंकि उसमें मोटर यूज होती है और यदि वहीं पर इंजन होगा तो फॉरवर्ड डायरेक्शन में तो इंजन फुल स्पीड में चला जाएगा लेकिन रिवल डायरेक्शन में वापस लाने के लिए या तो हमें इंजन को टर्न दिलवाना पड़ेगा अदर वाइज हमें इंजन के अंदर एक अलग ट्रांसमिशन की जरूरत पड़ेगी जो ट्रेन को रिवर्स डायरेक्शन में भी उतनी ही स्पीड में चला सके तो यह थोड़ी कॉन्प्लेक्स प्रोसेस हो जाती है इसलिए यहां पर मोटर यूज में ली जाती है |

जब ट्रेन की स्पीड 100 kmph की स्पीड से भी ज्यादा है तो इस वायर और पैंटोग्राफ के बीच में स्पार्किंग करंट क्यों नहीं होती है | 

असल में यहां पर स्पार्किंग क्रिएट होती है पर हमें दिखाई नहीं देती जिस वायर से ट्रेन को सप्लाई मिलती है उसको बोलते हैं कांटेक्ट वायर और यह जो कांटेक्ट वायर के ऊपर वायर है इसको बोलते हैं कैटनरी वायरस करंट सिर्फ कांटेक्ट वायर में ही फ्लोर होता है कैटनरी वाइट तो कांटेक्ट वायर को सपोर्ट देता है और एकदम स्ट्रेट रखता है इस पर क्रिएट नहीं होने देता कांटेक्ट वायर में जो कांटेक्ट वायर होता है वह स्टैंडर्ड कॉपर वायर का होता है और जो पैंटोग्राफ होता है उसके ऊपर ग्रेफाइट की कोटिंग की जाती है और ग्रेफाइट एक लुब्रिकेंट की तरह काम करता है ट्रेन के ऊपर यह जो स्ट्रक्चर है जो कांटेक्ट वाइट से टच रहता है इसको बोलते हैं पैंटोग्राफ तो नॉर्मल कंडीशन के अंदर तो हमें कोई स्पार्किंग नहीं दिखाई देगी लेकिन नाईट के टाइम में आप यहां पर देख सकते हो हल्के से स्पार्किंग देखने को मिलेगी जैसे कोई स्टार ब्लिंकिंग कर रहा है और दूसरी कंडीशन जब पैंटोग्राफ का कनेक्शन कांटेक्ट वायर से छूट जाता है और बीच में थोड़ा सा एरिया पड़ता है तो इलेक्ट्रिसिटी का ट्रांसलेशन करके शुरू होता है और एयर आपको पता है इलेक्ट्रिसिटी का बेड कंडक्टर है |

यहां पर स्पार्किंग क्रिएट होने लग जाती है पर ऐसा होता नहीं है क्योंकि पैंटोग्राफ अपनी हाइट को एडजस्ट करता रहता है हाइड्रोलिक मोटर के थ्रू और कांटेक्ट वायर पर प्रेशर से जुड़ा रहता है जो कांटेक्ट वायर होता है उसको बार-बार नहीं बदल सकते इसलिए स्टैंडर्ड कॉपर वायर को यूज में लिया जाता है और पैंटोग्राफ के अंदर ऐसी मेटल यूज़ में ली जाती है जो एक सॉफ्ट वायर होती है यदि पैंटोग्राफ और कांटेक्ट वायर के बीच में फंक्शन होता है हम तो पैंटोग्राफ की मेटल ही घिसने लग जाएगी |

फेज वायर क्या होता है ?

कांटेक्ट वायर को कुछ नहीं होगा वह एकदम सेफ रहेगा अब बात करते हैं इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव में अंदर बैठे पर्सन को क्यों इलेक्ट्रिक शॉक नहीं लगता तो इसको समझने से पहले हमें इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव की थोड़ी सी वर्किंग को समझना होगा |  जो ओवरहेड कांटेक्ट वायर होता है वह एक फेज वायर होता है और न्यूट्रल वायर का कनेक्शन इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव में ट्रेन के ट्रैक से मिलता है जो ओवरहेड वायर होता है उसमें 25 किलोवाट की सप्लाई दी जाती है  और हर 40 से 60 किलोमीटर के बीच में रेलवे का पावर हाउस होता है जो इस कांटेक्ट वायर को सप्लाई देता है तो जो भी ट्रांसफार्मर हाई वोल्टेज को 25 केवी तक डाउन करता है उसके फेज वायर को तो कांटेक्ट वाइट से कनेक्ट कर दिया जाता है और न्यूट्रल वायर को उसको सॉलिडली ट्रेन के ट्रैक से कांटेक्ट किया जाता है |

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इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव के अंदर ट्रांसफार्मर

अब इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव के अंदर भी एक ट्रांसफार्मर रहता है यह ट्रांसफार्मर पैंटोग्राफ के थ्रू फेज वायर लेता है | और जो ट्रेन के पहिये है उनके थ्रू न्यूट्रल वायर लेता है जो फेज वायर को रिटर्न पाथ प्रोवाइड करवाता है | और इस ट्रेन के इंजन में दो ट्रांसफार्मर रखे है यह 25 किलो वाल्ट को 600 वोल्टस तक स्टेप डाउन करता है और फिर रेक्टिफायर के सहारे डीसी में कन्वर्ट कर दिया जाता है | अभी अभी ट्रेन में डीसी मोटर यूज हुई है तो डीसी मोटर को सप्लाई दे दी जाती है वह यदि ऐसी मोटर है तो यहां पर इनवर्टर को काम में लिया जाता है और इसी डीसी को थ्री फेज ऐसी से में बदल दिया जाता है और फिर थ्री फेज इंडक्शन मोटर को रन करवाया जाता है जो ट्रेन के व्हील से जुड़ी रहती है |

अब यह जो भी प्रोसेस है इसमें जो फेज वायर है वह कहीं भी ट्रेन की बॉडी से नहीं जुड़ा रहता है जो भी सप्लाई आती है वह कहीं से भी ट्रेन की बॉडी को टच नहीं रहती है प्रॉपर्ली इंसुलेटेड रहती है और बाई चांस यदि कांटेक्ट वाइट टूट जाता है वह ट्रेन पर गिर जाता है तो ट्रेन की बॉडी में करंट फ्लो हो सकता है लेकिन जो पावर स्टेशन पर सर्किट ब्रेकर लगे रहते हैं वह तुरंत सर्किट को बंद कर देंगे जिससे ट्रेन की बॉडी में तो करंट फ्लो होने का कोई भी चांस नहीं है और दूसरी बात ट्रेन के ऊपर ही पैंटोग्राफ के बाद में एक सर्किट ब्रेकर लगा रहता है इमरजेंसी कंडीशन में यह सर्किट ब्रेकर भी ओपन हो जाता है तो इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव में हम सिंगल फेज को पहले डीसी में कन्वर्ट करते हैं और फिर डीसी में कन्वर्ट करने के बाद में यदि थ्री फेज इंडक्शन मोटर है तो इनवर्टर के थ्रू थ्री फेज में स्कोर कन्वर्ट कर दिया जाता है और फिर मोटर को रन करवाया जाता है |

जब ट्रेन का ट्रैक फेज को रिटर्न पाथ प्रोवाइड करवाता है और बाई चांस हम ट्रेन के ट्रैक से टच हो गए तो क्या हमें इलेक्ट्रिक शॉक लगेगा?

देखी इसका भी कोई चांस नहीं है कि हमें इलेक्ट्रिक शॉक लगेगा क्योंकि ट्रेन का पूरा का पूरा ट्रैक हर थोड़ी सी दूर के बाद में एक एलुमिनियम के रोड से ग्राउंड किया रहता है तो जो भी करंट होता है वह जमीन में चला जाता है क्योंकि करंट हमेशा लो रजिस्ट्री उपाद सेलेक्ट करता है और हमारी जो बॉडी है उसका रजिस्टर ज्यादा होता है तो हमें कोई भी इलेक्ट्रिक शॉक नहीं लगेगा जो भी एक्स्ट्रा करंट है वह पूरा का पूरा जमीन में ही चला जाएगा अब यह जो इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव है इसमें एक प्रॉब्लम सबसे ज्यादा आती है और वह प्रॉब्लम यह है कि जो इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव होती है वह वेट में हल्की होती है क्योंकि इनके अंदर वजन मोटर का और ट्रांसफार्मर रखे हैं उन्हीं का होगा तो इनका वजन ज्यादा नहीं होगा जबकि पावर मोटर के पास में बहुत है पर जब तक इस मोटर पर लोड नहीं पड़ेगा तब तक यह ज्यादा टॉर्च जनरेट नहीं करेगी और दूसरी प्रॉब्लम यह है कि जो ट्रेन पहिये है वह ट्रेन बहुत ज्यादा हैवी होती है |

तो वहीं पर स्लिप होने लग जाएंगे जिससे ट्रेन आगे नहीं बढ़ेगी इसलिए एक तो जो ट्रेन की बोगी है जहां पर यह जो कंट्रोल सेटअप रहता है इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव वहां पर हैवीवेट रखे जाते हैं ताकि व्हील्स में स्लिप क्रिएट ना हो और मोटर का टॉर्क भी इससे इंप्रूव होता है और यदि फिर भी व्हील्स स्लीप होते हैं तो इन व्हील्स के जस्ट सामने सैंडबॉक्स लगा रहता है जब विल स्लीप होते हैं तो इस सैंडबॉक्स से बालू रेत निकलती है जो एकदम सूखी रहती है और यह बालू रेत व्हील्स और ट्रक के बीच में फ्रिक्शन उत्पन्न करती है |

जिससे पहिये की स्लीपिंग कम होती है और यही सबसे बड़ा रीजन है कि जिन जिन लोगों मोटिव के अंदर ही इंजन लगा रहता है और इलेक्ट्रिसिटी जनरेट करता है वह ज्यादा पावरफुल होती है प्योर इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव से क्योंकि डीजल इंजन वाली लोकोमोटिव जो ट्रेक्शन मोटर है उस पर फुल लोड डाल कर रखती है जिससे वे ज्यादा पावर जनरेट करती है इसके अलावा आपने इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव की एक चीज और नोटिस की होगी इनके अंदर डीजल इंजन नहीं होता फिर भी यह आवाज करती है वह इसलिए क्योंकि इसके अंदर दो ट्रांसफार्मर और जो इन्वर्टर है उसको कॉलिंग के लिए इसके अंदर फैन चलते रहते हैं तो उन्हीं से आवाज होती रहती है तो यह थी लोकोमोटिव के बारे में |

धन्यवाद |

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