हाइपरलूप क्या है ? हाइपरलूप कैसे काम करता है ?

हाइपरलूप-कैसे-काम-करता-है

हाइपरलूप क्या है ? हाइपरलूप कैसे काम करता है ?

आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएँगे की हाइपरलूप क्या है ? हाइपरलूप कैसे काम करता है ? तो चलिए जानते है हाइपरलूप से जुडी बहुत सी महत्वपूर्ण बाते है जिनसे आपको लगभग सभी प्रश्नो के उत्तर मिल जाएंगे |

हाइपरलूप ट्रांसपोर्टेशन

हाइपरलूप ट्रांसपोर्टेशन की एक ऐसी फैसिलिटी है जिसकी स्पीड जमीन पर एयरप्लेन से भी ज्यादा है 1500  किलोमीटर प्रतिघंटा और आपको पता है जो डोमेस्टिक फ्लाइट होती है उनकी स्पीड होती है 500 से 550 प्रतिघंटा और जो हमारे इंटरनेशनल फ्लाइट होती है उनकी स्पीड होती है 900 किलोमीटर प्रतिघंटा और इस हाइपरलूप की स्पीड1500  किलोमीटर प्रतिघंटा वह भी कोई उड़ता नहीं है सिर्फ जमीन पर चलता है तो आज हम यही समझेंगे कि यह ऐसा पॉसिबल कैसे है ?

हाइपरलूप-कैसे-काम-करता-है
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स्पीड का दुश्मन फ्रिक्शन

स्पीड का जो दुश्मन फ्रिक्शन है यानी घर्सन, हमारी गाड़ियों के टायर घिसते हैं सिर्फ और सिर्फ फ्रिक्शन की वजह से इंजन की कुछ टाइम बाद में रिपेयरिंग करवानी पड़ती है फ्रिक्शन की वजह से पर सोचो यदि एक ऐसा सिस्टम बना दिया जाए जहां फ्रिक्शन हो ही नहीं एकदम जीरो फ्रिक्शन हो तो कोई भी हमारी गाड़ी होगी वह एकदम उंगली मात्र के धक्के से ही चल जाएगी गाड़ियों के टायर तो कभी घिसेंगे ही नहीं और यही मेकैनिज्म यूज होता है हाइपरलूप में | हाइपरलूप में फ्रिक्शन बिल्कुल भी नहीं होता है और इसी वजह से इसकी स्पीड 1500  किलोमीटर प्रतिघंटा के पास होती है |

एलोन मस्क

2012 में एलोन मस्क ने यह आइडिया दुनिया के सामने रखा इसके बाद में इसकी जो भी रूपरेखा थी वह तैयार की टेस्ला और स्पेस एक्स ने और यह दोनों कंपनियां इन्हीं की है | स्पेस एक्स एक ऐसी स्पेस एजेंसी है जिसने फिर से इस्तेमाल होने वाले रॉकेट बनाए हैं यानी जो रॉकेट स्पेस में जा भी सकता है और वापस भी धरती पर आराम से आ भी सकता है

हाइपरलूप ट्रेन के अंदर

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हाइपरलूप ट्रेन के अंदर एक पाइप होता है जिसको एक ट्यूब भी बोल सकते हैं इसके अंदर यह कैप्सूल चलता है कैप्सूल मतलब यह ट्रेन की बोगी जैसा होता है और यह ट्रेन जितना लंबा नहीं है यह सिर्फ इतना ही है यह एक ट्रैन की छोटी बोगी जितना है और यह एक बार में अकेला ही चल सकता है | अच्छा यह कैप्सूल इस ट्यूब के अंदर चलता है पर इस ट्यूब में टच नहीं होता क्योंकि टच हो जाएगा तो फ्रिक्शन होने लग जाएगा और हमें तो भैया फ्रिक्शन को एकदम जीरो करना है तो उसके लिए क्या किया जाता है कि मैग्नेट का जो इफेक्ट होता है उसको यहां पर काम में लिया जाता है आपने देखा होगा और ट्राई भी किया होगा यह बहुत बार कि चुंबक जो होती है उसके दो समान शिरो को यदि पास में लाया जाए तो वह एक दूसरे को दूर भागते हैं और वही दो अलग साइड को पास में लाया जाता है तो वह एक दूसरे से चिपक जाते हैं | अब जो दो मैग्नेट की डिफरेंट साइड है जिनको जब पास में लाते हैं तो रिपेल करती है यही मैकेनिज्म यूज होता है इस हाइपरलूप में इसमें जो यह पाइप होता है जिसको ट्यूब बोलते हैं इसमें मैग्नेट का मान लो नॉर्थ पोल को सेट कर दिया गया एकदम कंप्लीट पूरे पाइप के अंदर तो यह जो कैप्सूल होगा इसमें भी नॉर्थ पोल ही सेट कर दिया जाएगा पूरे के पूरे कैप्सूल के चारों तरफ तो इस केस में क्या होगा कि यह जो कैप्सूल होगा वह हवा में ही तैरने लग जाएगा क्योंकि मैग्नेट के दोनों पोल  एक दूसरे से रिपेल करेंगे | अब यह जो हाइपरलूप का कैप्सूल है यह हवा में तो आ गया तो फ्रिक्शन तो एकदम जीरो हो गया और इस केस में यदि हम उंगली से भी इसको सहारा लगाएंगे तो यह आगे खिसक जाएगा|

एयर बेयरिंग

असल में यह कैप्सूल हवा में नहीं आएगा क्योंकि इसका वेट ज्यादा होता है इसलिए इस कैप्सूल के नीचे लगे रहते हैं एयर बेयरिंग साइज में यह एकदम छोटे छोटे होते हैं देख सकते हो इनको आप जैसा किन का नाम एयर बेयरिंग है तो इनमें फ्रिक्शन ना के बराबर होता है 80% तक यह परीक्षण कम कर देते हैं यह सिर्फ इस कैप्सूल का वजन उठाकर रखते हैं बाकी इनमें ना कोई ब्रेक लगता है ना कोई इसमें इंजन की पावर सेट रहती है एयर बेयरिंग का यूज हाई स्पीड ऑपरेशन के लिए होता है और बाकी यह कैप्सूल साइड में से इस पाइप को टच नहीं करता है मैग्नेटिक इफेक्ट की वजह से |

हाइपरलूप-कैसे-काम-करता-है
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हवा का फ्रिक्शन

चलो ठीक है फ्रिक्शन तो जीरो हो गया लेकिन हवा का फ्रिक्शन तो अभी भी बाकी है हवा का भी तो फ्रिक्शन होता है ना भाई हवा रोकती है हवा का भी जबरदस्त परीक्षण होता है तो इस केस में जब कैप्सूल को इस ट्यूब के अंदर डाला जाता है तो यह बाहर से जो ढक्कन है ट्यूब का इसको बंद कर दिया जाता है और ट्यूब में बाहर की साइड जो यह कंप्रेसर लगे रहते हैं जो पूरी अंदर की हवा होती है उसको बाहर निकाल देते हैं मतलब पूरी एयर को बाहर नहीं निकालते 90% हवा को बाहर निकाल देते हैं

तो अब अंदर वेक्यूम बन गया यानी हवा का फ्रिक्शन भी हमने खत्म कर दिया तो अब इस केस में यह जो ट्रेन की बोगी है इसके लिए कोई भी फ्रिक्शन बचा ही नहीं है तो कितनी ही स्पीड में यह दौड़ सकती है अब यह चलो अब दौड़ तो सकती है लेकिन उसके लिए हमें कोई इंजन या मोटर चाहिए जो इसको आगे लेकर जाए |

लीनियर इंडक्शन मोटर

हाइपरलूप-कैसे-काम-करता-है
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इसमें इंजन के तौर पर इस्तेमाल होती है लीनियर इंडक्शन मोटर | जो नॉर्मल इंडक्शन मोटर होती है वह जो मोशन प्रोड्यूस करती है वह गोल गोल घूमते हैं | यानी उसका मोशन सर्कुलर होता है जबकि लीनियर इंडक्शन मोटर होती है उसमें जो मोशन प्रोड्यूस होता है वह एक सीधी लाइन में प्रोड्यूस होता है जो एंडलेस होता है और यह जो लीनियर इंडक्शन मोटर होती है यह बहुत ही ज्यादा महंगी होती है इसलिए सभी लीनियर इंडक्शन मोटर एक लाइन में मोशन प्रोड्यूस नहीं करती है कुछ जो इंडस्ट्री में यूज होती है वह हमारी नॉर्मल मोटर होती है वैसे ही काम करती है अब इस मोटर की हेल्प से यह ट्रेन तो आगे की तरफ चल गई लेकिन इसमें ब्रेक भी तो लगाने हैं वह कैसे लगाएंगे और एकदम हवा में ब्रेक लगाना इतना आसान काम नहीं है

हाइपरलूप ट्रेन के ब्रेक कैसे लगाए ?

तो उसके लिए यहां पर इस कैप्सूल को आप देख सकते हो इसके आगे की तरफ एक पंखा लगा हुआ है और ऐसा ही फैन पीछे की तरफ लगा रहता है जो इस ट्रेन को रोकता है अब यहां पर हवा तो होती नहीं एकदम वैक्यूम होता है तो यह फैंस ट्रेन को रोकेगा कैसे ?

इसलिए जो कंप्रेसर होते हैं वह 80% से 90% हवा को बाहर निकाल देते हैं कुछ इसके अंदर ही छोड़ देते हैं इस ट्रेन को रोकने के लिए |  हाइपरलूप कि इस ट्यूब के अंदर एक बार में सिर्फ एक ही कैप्सूल चल पाएगा | जब तक यह अपने डेस्टिनेशन पर नहीं पहुंच जाएगा तब तक दूसरा नहीं चलेगा लेकिन यह इसका स्टार्टिंग फेज है तो आगे क्यों जो वर्जन आएंगे तो शायद उसमें यह इंप्रूवमेंट भी हो जाएगा इस ट्यूब के अंदर वैक्यूम क्रिएट कर दिया जाता है लेकिन यह जो कैप्सूल होता है इसको आप अंदर से देख सकते हो इसकी डिजाइन कैसी है यहां पर प्रॉपर ऑक्सीजन अवेलेबल होती है  जैसे हवाई जहाज़ में होती है |

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हाइपरलूप का मेंटेनेंस

अच्छा यह जो हाइपरलूप है इसका मेंटेनेंस बहुत ही ना के बराबर है क्योंकि इसमें फ्रिक्शन तो होता ही नहीं है तो इसमें मेंटेनेंस वाली कोई चीज ही नहीं है हमारी गाड़ियों में जो भी मेंटेनेंस की जरूरत होती है वह सिर्फ और सिर्फ फ्रिक्शन की वजह से होती है और जो इसके अंदर इलेक्ट्रिसिटी की खपत होगी वह भी हाइपरलूप में ज्यादा नहीं होगी क्योंकि फिर से इसमें फ्रिक्शन नहीं है तो जो इसमें मोटर लगी है उसको ज्यादा फोर्स नहीं लगाना पड़ेगा इसको आगे चलाने के लिए तो इलेक्ट्रिसिटी के लिए इसमें जो यह हाइपरलूप की ट्यूब है इसके ऊपर ही सोलर पैनल सेट कर दिया जाएंगे जिनसे इनको पावर मिलेगी और यह रन करेगा

हाइपरलूप एक्सीडेंट

अच्छा यह जो हाइपरलूप है यह एकदम सीधा होना चाहिए तभी जाकर यह अपने प्रॉपर स्पीड में चल पाएगा वरना इतनी हाई स्पीड में यदि थोड़ा सा भी घुमाया गया तो यह इस पाइप को तोड़कर बाहर निकल जाएगा और जबरदस्त एक्सीडेंट हो सकता है | वैसे एक्सीडेंट होने के चांसेस इसमें एकदम ना के बराबर है क्योंकि यह कैप्सूल पाइप के अंदर चलेगा जहां पर जैसे नॉर्मल ट्रेन के सामने कभी गाय आ जाती है कभी हाथी आ जाता है तो कभी कुछ आ जाता है तो ऐसा इसमें कुछ भी नहीं है इसमें एक्सीडेंट होने के चांस तभी है जब भूकंप आ जाता है उस कंडीशन में यह हाइपरलूप हिलेगा और हिलेगा तो यह कैप्सूल इसकी साइड में टच होगा और इतनी हाई स्पीड में यहां पर आग लग सकती है और ब्लास्ट भी हो सकता है

इंडिया में हाइपरलूप

हाइपरलूप-कैसे-काम-करता-है
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इंडिया में यह हाइपरलूप मुंबई से पुणे के बीच में 140 किलोमीटर की दूरी है इसमें इसको सेट करने की बात की गई है अभी यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ है और पूरा क्या अभी तो यह शुरू ही नहीं हुआ है जिसमें 140 किलोमीटर की दूरी 30 मिनट से भी कम टाइम में पूरी कर ली जाएगी लेकिन इसमें जो पैसेंजर सवारी करेंगे उनका किराया बहुत ज्यादा हो सकता है क्योंकि यह हाइपरलूप बहुत ज्यादा महंगा है |

हाइपरलूप: लॉस एंजलिस से सैन फ्रांसिस्को

लॉस एंजलिस से सैन फ्रांसिस्को के बीच में 600 किलोमीटर की दूरी है जिसमें इसकी कॉस्ट है $6 बिलियन डॉलर तो ऐसा समझ सकते हैं कि 100 किलोमीटर में $1 बिलियन धन खर्च होगा | लेकिन यह सिर्फ वन टाइम इन्वेस्टमेंट है बाद में इसमें ज्यादा ना ही तो मेंटेनेंस का खर्चा है ना ही इलेक्ट्रिसिटी का करता है तो इस वजह से इसका किराया कम भी हो सकता है|

धन्यवाद |

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